हम-सफ़र याद हैं उस के जो सफ़र ख़त्म हुआ
हम-सफ़र याद हैं उस के जो सफ़र ख़त्म हुआ
जाने कब कौन सी साज़िश हो ये डर ख़त्म हुआ
बे-सबब सब को ही सब्क़त के जुनूँ ने मारा
ऐसे बिखरे हैं कि रिश्तों का असर ख़त्म हुआ
ए'तिबार उठते ही ये कैसा तग़य्युर आया
दिल का वीरान मकाँ रह गया घर ख़त्म हुआ
शाख़ ही शाख़ की दुश्मन थी समर क्या देता
फूलने-फलने से पहले ही शजर ख़त्म हुआ
जानता था कि मिरे गीत भी खो जाएँगे
तेरा मुझ से जो तअ'ल्लुक़ था अगर ख़त्म हुआ
हम तो माइल थे ब-हर-हाल लहू देने पर
इक तिरी तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल से जिगर ख़त्म हुआ
उस को बस मुझ को डुबोने ही की ज़िद थी शायद
मैं जो डूबा तो मिरे साथ भँवर ख़त्म हुआ
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