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किसी ख़मोशी का ज़हर जब इक मुकालमे की तरह से चुप था - नज्मुस्साक़िब कविता - Darsaal

किसी ख़मोशी का ज़हर जब इक मुकालमे की तरह से चुप था

किसी ख़मोशी का ज़हर जब इक मुकालमे की तरह से चुप था

ये वाक़िआ है कि शहर-ए-क़ातिल बुझे दिए की तरह से चुप था

सहर के आसार जब नुमायाँ हुए तो बीनाई छिन चुकी थी

क़ुबूलियत का वो एक लम्हा मुजस्समे की तरह से चुप था

किसी तअल्लुक़ के टूटने का अज़ाब दोनों के दिल पर उतरा

मैं अक्स बन के ठहर गया था वो आईने की तरह से चुप था

पड़ाव डाले किसी ने आ के हज़ार कोसों की दूरियों में

हमारा दिल कि किसी परिंदा के घोंसले की तरह से चुप था

कहीं से उस को भी मेरी चाहत की कुछ दलीलें मिली थीं शायद

वो अब के आया तो गुज़री शामों के इक समय की तरह से चुप था

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In Hindi By Famous Poet Najmus Saqib. is written by Najmus Saqib. Complete Poem in Hindi by Najmus Saqib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.