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अजनबी शहर की अजनबी शाम में - नजमा शाहीन खोसा कविता - Darsaal

अजनबी शहर की अजनबी शाम में

अजनबी शहर की अजनबी शाम में

ज़िंदगी ढल गई मल्गजी शाम में

शाम आँखों में उतरी उसी शाम को

ज़िंदगी से गई ज़िंदगी शाम में

दर्द की लहर में ज़िंदगी बह गई

उम्र यूँ कट गई हिज्र की शाम में

इश्क़ पर आफ़रीं जो सलामत रहा

इस बिखरती हुई सुरमई शाम में

हर तरफ़ अश्क और सिसकियाँ हिज्र की

दर्द ही दर्द है हर घड़ी शाम में

आख़िरी बार आया था मिलने कोई

हिज्र मुझ को मिला वस्ल की शाम में

रात 'शाहीन'! आँखों में कटने लगी

इस तरह गुम हुई रौशनी शाम में

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In Hindi By Famous Poet Najma Shaheen Khosa. is written by Najma Shaheen Khosa. Complete Poem in Hindi by Najma Shaheen Khosa. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.