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निगाह-ओ-रुख़ पर है लिखी जाती जो बात लब पर रुकी हुई है - नजीबा आरिफ़, मोईनुद्दीन आक़िल कविता - Darsaal

निगाह-ओ-रुख़ पर है लिखी जाती जो बात लब पर रुकी हुई है

निगाह-ओ-रुख़ पर है लिखी जाती जो बात लब पर रुकी हुई है

महक छुपे भी तो कैसे दिल में कली जो ग़म की खिली हुई है

जो दिल से लिपटा है साँप बन कर डरा रहा है बचा रहा है

ये सारी रौनक़ उस इक तसव्वुर के दम से ही तो लगी हुई है

ख़याल अपना कमाल अपना उरूज अपना ज़वाल अपना

ये किन भुलैयों में डाल रखा है कैसी लीला रची हुई है

हम अपनी कश्ती सराब-गाहों में डाल कर मुंतज़िर खड़े हैं

न पार लगते न डूबते हैं हर इक रवानी थमी हुई है

अज़ल अबद तो फ़क़त हवाले हैं वक़्त की बे-मक़ाम गर्दिश

ख़बर नहीं है थमे कहाँ पर कहाँ से जाने चली हुई है

भड़क के जलना नहीं गवारा तो मेरे पर्वरदिगार मौला

न ऐसी आतिश नफ़स में भरते कि जिस से जाँ पर बनी हुई है

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In Hindi By Famous Poet Najeeba Arif, Moinuddin Aqil. is written by Najeeba Arif, Moinuddin Aqil. Complete Poem in Hindi by Najeeba Arif, Moinuddin Aqil. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.