ज़िंदगी भर की कमाई ये तअल्लुक़ ही तो है
कुछ बचे या न बचे इस को बचा रखते हैं
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(454) Peoples Rate This
दिल को हर गाम पे धड़के से लगे रहते हैं
ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतियात से धरना
अंधे बदन में ये सहर-आसार कौन है
मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
तिरा रंग-ए-बसीरत हू-ब-हू मुझ सा निकल आया
ख़ेमा-ए-जाँ की तनाबों को उखड़ जाना था
शब भली थी न दिन बुरा था कोई
'नजीब' इक वहम था दो चार दिन का साथ है लेकिन
दिए आँखों की सूरत बुझ चुके हैं
बदन से जाँ निकलना चाहती है
वही रिश्ते वही नाते वही ग़म