रुकूँ तो हुजला-ए-मंज़िल पुकारता है मुझे
क़दम उठाऊँ तो रस्ता नज़र नहीं आता
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ख़याल रखना
ज़र्द पत्तों को दरख़्तों से जुदा होना ही था
तिरा रंग-ए-बसीरत हू-ब-हू मुझ सा निकल आया
मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
यक़ीं ने मुझ को असीर-ए-गुमाँ न रहने दिया
इक वहम की सूरत सर-ए-दीवार-ए-यक़ीं हैं
आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
इश्क़-आबाद फ़क़ीरों की अदा रखते हैं
दिए आँखों की सूरत बुझ चुके हैं
पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा
हर-चंद जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ