फिर यूँ हुआ कि मुझ पे ही दीवार गिर पड़ी
लेकिन न खुल सका पस-ए-दीवार कौन है
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आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए
ज़िंदगी भर की कमाई ये तअल्लुक़ ही तो है
शब भली थी न दिन बुरा था कोई
मिरी ज़मीं मुझे आग़ोश में समेट भी ले
निशाँ किसी को मिलेगा भला कहाँ मेरा
ज़रूरत कुछ ज़ियादा हो न जाए
पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा
मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
इक तिरी याद गले ऐसे पड़ी है कि 'नजीब'
तेरे हमदम तिरे हमराज़ हुआ करते थे
कुछ इस के सिवा ख़्वाहिश-ए-सादा नहीं रखते