मिरी नुमूद किसी जिस्म की तलाश में है
मैं रौशनी हूँ अंधेरों में चल रहा हूँ अभी
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ख़ेमा-ए-जाँ की तनाबों को उखड़ा जाना था
अभी कुछ काम बाक़ी हैं
मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए
किरन तो घर के अंदर आ गई थी
ज़िंदगी भर की कमाई ये तअल्लुक़ ही तो है
इस दाएरा-ए-रौशनी-ओ-रंग से आगे
कि ख़ुद इंसान ढलता जा रहा है
रुकूँ तो हुजला-ए-मंज़िल पुकारता है मुझे
वही रिश्ते वही नाते वही ग़म
शब के ख़िलाफ़ बरसर-ए-पैकार कब हुए