मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
रौशनी ख़ाक में तहलील नहीं हो सकती
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पैरहन उड़ जाएगा रंग-ए-क़बा रह जाएगा
इक वहम की सूरत सर-ए-दीवार-ए-यक़ीं हैं
ज़िंदगी भर की कमाई ये तअल्लुक़ ही तो है
मिरी नुमूद किसी जिस्म की तलाश में है
वही रिश्ते वही नाते वही ग़म
नाव ख़स्ता भी न थी मौज में दरिया भी न था
किरन तो घर के अंदर आ गई थी
आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा
कुछ इस के सिवा ख़्वाहिश-ए-सादा नहीं रखते
ख़्वाब-गाह