किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
किस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है
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मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
इश्क़-आबाद फ़क़ीरों की अदा रखते हैं
ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतियात से धरना
बदन से जाँ निकलना चाहती है
किरन तो घर के अंदर आ गई थी
इक तिरी याद गले ऐसे पड़ी है कि 'नजीब'
ख़याल रखना
ख़ेमा-ए-जाँ की तनाबों को उखड़ा जाना था
आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिए
रुकूँ तो हुजला-ए-मंज़िल पुकारता है मुझे
तिरा रंग-ए-बसीरत हू-ब-हू मुझ सा निकल आया
नाव ख़स्ता भी न थी मौज में दरिया भी न था