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कि ख़ुद इंसान ढलता जा रहा है - नजीब अहमद कविता - Darsaal

कि ख़ुद इंसान ढलता जा रहा है

कि ख़ुद इंसान ढलता जा रहा है

खलंडरा सा कोई बच्चा है दरिया

समुंदर तक उछलता जा रहा है

न कुछ कहता न कुछ सुनता है कोई

फ़क़त पहलू बदलता जा रहा है

इधर मिलती नहीं साँसों से साँसें

ज़माना है कि चलता जा रहा है

नहीं उस को खिलौनों की ज़रूरत

वो अब ख़ुद ही बहलता जा रहा है

मकानों में नए रौज़न बना लो

हवा का रुख़ बदलता जा रहा है

'नजीब' अब तो शरार-ए-बे-हिसी से

तिरा चेहरा पिघलता जा रहा है

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In Hindi By Famous Poet Najeeb Ahmad. is written by Najeeb Ahmad. Complete Poem in Hindi by Najeeb Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.