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''खेल जारी रहे'' - नैना आदिल कविता - Darsaal

''खेल जारी रहे''

बे-झिजक, बे-ख़तर

बे-धड़क वार कर

मेरी गर्दन उड़ा

और ख़ूँ से मिरे कामयाबी के अपनी नए जाम भर

छीन ले हुस्न-ओ-ख़ूबी, अना, दिलकशी

मेरे लफ़्ज़ों में लिपटा हुआ माल-ओ-ज़र

मेरी पोरों से बहती हुई रौशनी

मेरे माथे पे लिक्खे हुए सब हुनर

तुझ से शिकवा नहीं

ऐ अदू मेरे मैं तेरी हमदर्द हूँ

तेरी बे-चेहरगी मुझ को भाती नहीं

तुझ से कैसे कहूँ!!!

तुझ से कैसे कहूँ! क़त्ल करना मुझे तेरे बस में नहीं

(और हो भी अगर, तेरी कम-माएगी मा मुदावा नहीं)

हाँ मगर तेरी दिल-जूई के वास्ते

मेरी गर्दन पे यूँ तेरा ख़ंजर रहे

(तेरी दानिस्त में)

खेल जारी रहे

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In Hindi By Famous Poet Naina Adil. is written by Naina Adil. Complete Poem in Hindi by Naina Adil. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.