''खेल जारी रहे''
बे-झिजक, बे-ख़तर
बे-धड़क वार कर
मेरी गर्दन उड़ा
और ख़ूँ से मिरे कामयाबी के अपनी नए जाम भर
छीन ले हुस्न-ओ-ख़ूबी, अना, दिलकशी
मेरे लफ़्ज़ों में लिपटा हुआ माल-ओ-ज़र
मेरी पोरों से बहती हुई रौशनी
मेरे माथे पे लिक्खे हुए सब हुनर
तुझ से शिकवा नहीं
ऐ अदू मेरे मैं तेरी हमदर्द हूँ
तेरी बे-चेहरगी मुझ को भाती नहीं
तुझ से कैसे कहूँ!!!
तुझ से कैसे कहूँ! क़त्ल करना मुझे तेरे बस में नहीं
(और हो भी अगर, तेरी कम-माएगी मा मुदावा नहीं)
हाँ मगर तेरी दिल-जूई के वास्ते
मेरी गर्दन पे यूँ तेरा ख़ंजर रहे
(तेरी दानिस्त में)
खेल जारी रहे
(535) Peoples Rate This