ज्वाला-मुक्खी
ना-गहाँ
आतिशीं लौ भड़कने लगी सब्ज़ पत्तों तले
तिलमिलाती, ग़ज़बनाक और... मुश्तइल
आग
यक-लख़्त बेताब हो कर उठी
ऑन की ऑन में
बेल बूटे, शजर...
फूल, पत्ते, समर....
राख का ढेर होने लगे इस तरह
सुर्ख़ शोले निगलने लगे घोंसले
(घोंसलों में पड़े गोश्त के लोथड़े)
बस धुआँ रह गया दूर तक राह में
और बदलता गया एक जंगल हरा! देखते देखते
सुर्मगीं ख़ाक में
सब्ज़ मंज़र कोई यूँ जला आँख में
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