कुछ हुस्न-ए-वफ़ा के दीवाने फिर इश्क़ की राह में काम आए
कुछ हुस्न-ए-वफ़ा के दीवाने फिर इश्क़ की राह में काम आए
ऐ काश तमाशा करने को ख़ुद तू भी कनार-ए-बाम आए
अल्फ़ाज़ न थे आवाज़ न थी नामा भी न था क़ासिद भी न था
ऐसे भी कई पैग़ाम गए ऐसे भी कई पैग़ाम आए
शब मय-ख़ाने की महफ़िल में अर्बाब-ए-जफ़ा का ज़िक्र चला
चुप सुनते रहे हम डरते रहे तेरा भी न उन में नाम आए
हम गरचे फ़लक-पर्वाज़ भी हैं और तारों के हमराज़ भी हैं
सय्याद पे आया रहम हमें ख़ुद शौक़ से ज़ेर-ए-दाम आए
फिर लाला-ओ-गुल की नगरी से इठलाती हुई आई है सबा
ऐ अहल-ए-क़फ़स चुप-चाप सुनो! फूलों के तुम्हें पैग़ाम आए
ये बात अलग है पास रहा कुछ तिश्ना-लबी की ग़ैरत का
हम पर भी रहा साक़ी का करम हम तक भी बहुत से जाम आए
शब कितनी बोझल बोझल है हम तन्हा तन्हा बैठे हैं
ऐसे में तुम्हारी याद आई जिस तरह कोई इल्हाम आए
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