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शिकवे की शाम - नाहीद क़ासमी कविता - Darsaal

शिकवे की शाम

रुख़्सत होते सूरज की किरनों का आँचल थामे थामे

मैं भी छत पर जा पहुँची थी

मिरे गिले-शिकवे तो सारे गूँगे बन बैठे थे

और मेरी कुछ कहती आँखें

बारह-दरी की चिलमन के हालों में फॅंसती थीं

फिर क्यूँ गाँव से जाते जाते

गली के मोड़ पे रुकते रुकते

तुम ने ऊपर, मेरी जानिब देखा था

और तुम्हारा उठता हाथ ज़रा सा काँप गया था

और तुम्हारी रौशन रौशन आँखें बुझ सी गई थीं

दूर उफ़ुक़ में सूरज डूब गया था

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In Hindi By Famous Poet Nahid Qasmi. is written by Nahid Qasmi. Complete Poem in Hindi by Nahid Qasmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.