अक्स-दर-अक्स
न चाँद-माथा न तारा-ठोड़ी
न झील-आँखें, न फूल-लब हैं
न आँच अज़्म-ओ-यक़ीं की दिल में
नुक़ूश-ए-रुख़ इतने मिट गए हैं, नुक़ूश कब हैं
ऐ आईने वक़्त के! तुझे एक बार भी
इक हसीं चेहरा न दे सके हम
मगर हैं हम अब भी अक्स तेरा
वो अक्स ही तो हमारा सच है
हमारी आँखें बुझी हुई हैं मगर यही तो हैं तेरी आँखें
हमारे चेहरे सुते हुए हैं, मगर यही तो है तेरा चेहरा
हमारे आँसू हैं तेरे आँसू, हमारे दुख सारे तेरे दुख हैं
कि तू भी सच बोलने का आदी है, हम भी आदी
हम अपने चेहरे, हम अपने बातिन सँवार लेंगे
हमारी आँखों में देख अपने हसीन फ़र्दा का इक हयूला
कि चाँद माथा है, तारा थोड़ी है, झील आँखें हैं, फूल लब हैं
हसीन हैं हम, हसीन है तू हसीन सब हैं
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