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जो तू मेरा मुक़द्दर बनते बनते रह गया है - नाहीद विर्क कविता - Darsaal

जो तू मेरा मुक़द्दर बनते बनते रह गया है

जो तू मेरा मुक़द्दर बनते बनते रह गया है

समझ ले, कुछ कहीं पर बनते बनते रह गया है

ये दिल के ज़ख़्म तो वैसे के वैसे ही हरे हैं

कि तेरा लम्स मंतर बनते बनते रह गया है

मैं तेरी दूरी-ओ-क़ुर्बत से आगे आ गई हूँ

सो तेरा नक़्श दिल पर बनते बनते रह गया है

अजब ही क्या है जो मुझ को नहीं तू मिल सका तो

मिरा हर काम अक्सर बनते बनते रह गया है

कहानी इब्तिदा ही से बहुत उलझी हुई थी

सभी कुछ इस में बेहतर बनते बनते रह गया है

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In Hindi By Famous Poet Naheed Virk. is written by Naheed Virk. Complete Poem in Hindi by Naheed Virk. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.