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अभी से ताक़-ए-तलब पर न तू सजा मुझ को - नाहीद विर्क कविता - Darsaal

अभी से ताक़-ए-तलब पर न तू सजा मुझ को

अभी से ताक़-ए-तलब पर न तू सजा मुझ को

अभी तो करना है इस दिल से मशवरा मुझ को

अभी शबीह मुकम्मल नहीं हुई तेरी

अभी तो भरना है इक रंग-ए-मावरा मुझ को

कोई न कोई तो सूरत निकल ही आएगी

ज़रा बताओ तो दरपेश मरहला मुझ को

ये बात बात पे तकरार-ओ-बहस क्या करना

कि जीतना है तुम्हें और हारना मुझ को

मैं उस की ज़ात में शामिल थी, उस को मिल जाती

दुआ-ए-ख़ैर समझ कर वो माँगता मुझ को

मैं जिस में देख के ख़ुद को सँवार लूँ 'नाहीद'

अभी मिला ही कहाँ है वो आइना मुझ को

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In Hindi By Famous Poet Naheed Virk. is written by Naheed Virk. Complete Poem in Hindi by Naheed Virk. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.