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हवा की हल्की सी आहट पे यूँ मचल जाना - नाहीद कौसर कविता - Darsaal

हवा की हल्की सी आहट पे यूँ मचल जाना

हवा की हल्की सी आहट पे यूँ मचल जाना

उमीद-ए-वस्ल पे बिस्मिल का फिर सँभल जाना

न आ रहे थे न आना था और न इम्काँ था

ये ज़ोम-ए-दिल था या क़िस्मत का यूँ बदल जाना

ये दिल पे बोझ है दर्दों का या तिरी यादें

या आबलों का हरारत से है पिघल जाना

तिरी तलाश में उठ उठ के पागलों की तरह

शब-ए-फ़िराक़ में घर से कहीं निकल जाना

ये जानते हैं कि मुमकिन नहीं तू लौट आए

शिआर-ए-दिल है तिरी याद से बहल जाना

तिरी उमीद का जब सर से उठ गया आँचल

तो फ़स्ल-ए-गुल में था यकसर ख़िज़ाँ में ढल जाना

अभी थी तेरे सफ़ीने की मुंतज़िर 'कौसर'

अजब लगा तिरे साहिल से यूँ फिसल जाना

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In Hindi By Famous Poet Naheed Kausar. is written by Naheed Kausar. Complete Poem in Hindi by Naheed Kausar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.