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हम पे वो मेहरबान कुछ कम है - नफ़स अम्बालवी कविता - Darsaal

हम पे वो मेहरबान कुछ कम है

हम पे वो मेहरबान कुछ कम है

इस लिए ख़ुश-बयान कुछ कम है

मिट गया हूँ पर उस की नज़रों में

अब भी ये इम्तिहान कुछ कम है

शहर में यूँ ज़मीं तो काफ़ी है

नीलगूँ आसमान कुछ कम है

ग़म के सामान कुछ ज़ियादा हैं

इस मुताबिक़ मकान कुछ कम है

सर छुपाऊँ तो पाँव जलते हैं

मुझ पे ये साएबान कुछ कम है

ज़िंदगी और दे अज़ाब मुझे

मुझ पे आएद लगान कुछ कम है

फ़स्ल-ए-बारूद है पहाड़ों पर

इस बरस ज़ाफ़रान कुछ कम है

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In Hindi By Famous Poet Nafas Ambalvi. is written by Nafas Ambalvi. Complete Poem in Hindi by Nafas Ambalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.