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हम आज अपना मुक़द्दर बदल के देखते हैं - नफ़स अम्बालवी कविता - Darsaal

हम आज अपना मुक़द्दर बदल के देखते हैं

हम आज अपना मुक़द्दर बदल के देखते हैं

तुम्हारे साथ भी कुछ दूर चल के देखते हैं

उधर चराग़ बुझाने को है हवा बेताब

इधर ये ज़िद कि हवाओं में जल के देखते हैं

चलो फिर आज ज़मीनों में जज़्ब हो जाएँ

छलक के आँख से बाहर निकल के देखते हैं

ये इश्क़ कोई बला है जुनून है क्या है

ये कैसी आग है पत्थर पिघल के देखते हैं

अजीब प्यास है दरिया से बुझ नहीं पाई

जो तुम कहो तो समुंदर निगल के देखते हैं

वो गर निगाह मिला ले तो मो'जिज़ा कर दे

इसी लिए तो उधर हम सँभल के देखते हैं

बदल के ख़ुद ही हमीं रह गए ज़माने में

चले थे घर से कि दुनिया बदल के देखते हैं

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In Hindi By Famous Poet Nafas Ambalvi. is written by Nafas Ambalvi. Complete Poem in Hindi by Nafas Ambalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.