ख़्वाहिश
एक अजीब ख़्वाहिश है
इस ज़मीं के कोने में
सिर्फ़ मह-जबीनों की
सब की सब हसीनों की
अपनी एक बस्ती हो
ज़िंदगी जहाँ हर पल खिलखिला के हँसती हो
रंग-ओ-नूर की बारिश
हर घड़ी बरसती हो
सब ग़ज़ाल-नैनों में
शोख़ सी शरारत हो
इन की जुम्बिश-ए-लब से
ज़िंदगी इबारत हो
ख़ुशियों का झमेला हो
पलकों पे सितारे हों
रौशनी का रेला हो
ख़ुशबुओं का मेला हो
और मह-जबीनों की इस हसीन बस्ती में
एक सिर्फ़ मेरा ही
चूड़ियों का ठेला हो
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