ए'तिराफ़
तुम्हें है फ़ख़्र कि तुम हो मिरी शरीक-ए-हयात
मुझे ये दुख है
कि तुम मेरी हम-सफ़र ठहरी
मैं कम-नसीब जो क़िस्मत से अपनी लड़ न सका
तिरे सफ़र को बहुत ताबनाक कर न सका
तुम्हारी ख़्वाहिशों के ख़्वाब-नाक दामन को
नए ज़माने की रंगीनियों से भर न सका
मगर मैं आज भी
ये ए'तिराफ़ करता हूँ
तुम्ही थी मेरी मोहब्बत
तुम्ही हो जान-ए-हयात
मैं ख़ुश-नसीब कि तुम हो मेरी शरीक-ए-हयात
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