वो मिरे दिल में यूँ समा के गई
लाख चाहा मगर न जा के गई
एक अर्सा हुआ कभी न खुली
दिल पे जो गिरह वो लगा के गई
रात ग़म की कटे नहीं कटती
सुब्ह इक पल में मुस्कुरा के गई
मान टूटे तो फिर नहीं जुड़ता
बद-गुमानी कभी न आ के गई
ऐ 'नईम' अब न वापसी होगी
बारहा ज़िंदगी बता के गई