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वक़्त पर इश्क़-ए-ज़ुलेख़ा का असर लगता है - नईम जर्रार अहमद कविता - Darsaal

वक़्त पर इश्क़-ए-ज़ुलेख़ा का असर लगता है

वक़्त पर इश्क़-ए-ज़ुलेख़ा का असर लगता है

आख़िर-ए-उम्र भी आग़ाज़-ए-सफ़र लगता है

ये समुंदर है मगर सोख़्ता-जाँ शाइर को

किसी मजबूर का इक दीदा-ए-तर लगता है

सुब्ह-ए-ताज़ा है मुक़द्दर दिल-ए-मायूस ठहर

शजर-ए-उम्मीद पे इनआ'म-ए-समर लगता है

मैं ज़बाँ-बंदी का ये अहद नहीं तोडूँगा

हाँ मगर इस दिल-ए-गुस्ताख़ से डर लगता है

हमें इदराक-ए-मोहब्बत तो नहीं है लेकिन

इतना मालूम है इस खेल में सर लगता है

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In Hindi By Famous Poet Naeem Zarrar Ahmad. is written by Naeem Zarrar Ahmad. Complete Poem in Hindi by Naeem Zarrar Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.