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लोग लड़ते रहे नाम आए तलब-गारों में - नईम जर्रार अहमद कविता - Darsaal

लोग लड़ते रहे नाम आए तलब-गारों में

लोग लड़ते रहे नाम आए तलब-गारों में

हम कि चुप-चाप खड़े थे तिरे बीमारों में

ज़ुल्म के हम हैं मुख़ालिफ़ मगर इक दिन के लिए

शोर हर रोज़ नया उठता है अख़बारों में

आज-कल शिकवा-ए-नापैद है जिस ग़ैरत का

ख़ूब बिकती है मिरे शहर के बाज़ारों में

फ़ख़्र क्या कम है कि नीलामी-ए-यूसुफ़ में 'नईम'

तही-दामाँ थे मगर थे तो ख़रीदारों में

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In Hindi By Famous Poet Naeem Zarrar Ahmad. is written by Naeem Zarrar Ahmad. Complete Poem in Hindi by Naeem Zarrar Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.