ग़ैर के घर सही वो आया तो
ग़ैर के घर सही वो आया तो
ग़म ही मेरे लिए वो लाया तो
दुश्मनों को मुआफ़ कर डाला
दोस्तों से फ़रेब खाया तो
पेड़ के घोंसलों का क्या होगा
घर उसे काट कर बनाया तो
फिर मिरे सामने थी इक दीवार
एक दीवार को गिराया तो
किस क़दर ज़ोर से हुई बारिश
मैं ने काग़ज़ का घर बनाया तो
क्या करोगे 'नईम' साल-ए-नौ
पेश-रौ की तरह ही आया तो
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