ख़ुद को मुर्शिद मान ले प्यारे क्यूँ और क्या का भेद समझ
ख़ुद को मुर्शिद मान ले प्यारे क्यूँ और क्या का भेद समझ
अपनी सूरत तकता रह और फिर कैसा का भेद समझ
तुझ से बढ़ कर दश्त नहीं है तुझ से बढ़ कर गोर नहीं
इस जंगल में आ उस गोर में रह मौला का भेद समझ
जानने वाले मानने वालों से अफ़ज़ल है ध्यान रहे
मजनूँ मत बन होश में रह और फिर लैला का भेद समझ
पानी सर से ऊपर चढ़ने दे साँसों की माला फिर
दो जान होता मैं बैठ और दिल दरिया का भेद समझ
हर इक़रार से पहले इक इंकार की हिफ़ाज़त होती है
अल्लाह के बंदे अल्लाह से पहले ला का भेद समझ
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