है तल्ख़-तर हयात इस शराब से
है तल्ख़-तर हयात इस शराब से
तू इश्क़ हार देगा इज्तिनाब से
कहानियाँ दहक रही हैं रात की
बदन उलझ रहे हैं माहताब से
ख़ुदा-ए-ख़्वाब ख़ेमा-ज़न था आँख में
सो दिल चटख़ रहा था इज़्तिराब से
मैं रौशनी के बीज बो के सो गया
चराग़ उग रहे हैं किश्त-ए-ख़्वाब से
रफू-गरो हम ऐसे ख़स्ता-तन यहाँ
उधड़ उधड़ के आएँगे सराब से
'रज़ा' ये ख़ुशबुओं का ज़ाइक़ा नहीं
जो रिस रहा है जिस्म के गुलाब से
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