एक तो इश्क़ की तक़्सीर किए जाता हूँ
एक तो इश्क़ की तक़्सीर किए जाता हूँ
उस पे मैं पैरवी-ए-'मीर' किए जाता हूँ
मा'ज़रत घर के चराग़ों से करूँगा कैसे
मैं जो ताख़ीर पे ताख़ीर किए जाता हूँ
या'नी तस्वीर-ए-ज़माँ पर है तसर्रुफ़ इतना
देखता जाता हूँ तहरीर किए जाता हूँ
बाग़बाँ तुझ से तो मैं दाद-तलब हूँ भी नहीं
पेड़ सुनते हैं मैं तक़रीर किए जाता हूँ
ये इलाक़ा न हो दरिया की अमल-दारी में
मैं जहाँ नाव को ज़ंजीर किए जाता हूँ
आख़िरश ख़ाक उड़ा कर सर-ए-राहे दिल की
एक दुनिया को मैं दिल-गीर किए जाता हूँ
उस की बुनियाद में इक ख़ाम-ए-ख़याली है 'नईम'
शहर जो ख़्वाब में ता'मीर किए जाता हूँ
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