हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए
हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए
ख़्वाब को ख़्वाब की ता'बीर में देखा जाए
देखने को मैं फ़क़त इतना बचा हूँ या'नी
मुझ को इक मंज़र-ए-तस्वीर में देखा जाए
खुल भी सकता है जहाँ पर मिरा अंदाज़-ए-जुनूँ
ज़ख़्म जो हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में देखा जाए
सब्र भी जिस के निशाने पे है और सीना भी
हौसला कितना है उस तीर में देखा जाए
इस क़दर दीदा-ए-गिर्यां का तो हक़ बनता है
अब उसे नाला-ए-शब-गीर में देखा जाए
तब कहीं दर्द उतरता है रग-ओ-पै में 'नईम'
शे'र जब 'मीर' की तासीर में देखा जाए
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