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हम उन के ग़म में तड़प रहे हैं जो ग़ैर से दिल लगा चुके हैं - नादिर शाहजहाँ पुरी कविता - Darsaal

हम उन के ग़म में तड़प रहे हैं जो ग़ैर से दिल लगा चुके हैं

हम उन के ग़म में तड़प रहे हैं जो ग़ैर से दिल लगा चुके हैं

हमारे दिल में है याद उन की जो हम को दिल से भुला चुके हैं

बला-ए-महशर भी सहल उन को अज़ाब-ए-दोज़ख़ भी उन को आसाँ

जो तेरी उल्फ़त में अपने दिल पर ग़म-ए-जुदाई उठा चुके हैं

अदू से जा कर करो ये बातें वहीं गुज़ारो तुम अपनी रातें

तुम्हारी बातों में आ चुके हम तुम्हें बहुत आज़मा चुके हैं

अगर न आएँ नज़र न आएँ नहीं है कुछ भी ख़याल इस का

कहाँ वो जाएँगे मुँह छुपा कर हमारे दिल में जब आ चुके हैं

ये क्या क़यामत है या इलाही कि उन की आमद का हाल सुन कर

शकेब-ओ-सब्र-ओ-क़रार होश-ओ-हवास पहले ही जा चुके हैं

ख़याल कुछ भी नहीं है तुझ को बुत-ए-परीवश हमारा हम तो

तिरी मोहब्बत में नक़्द-ए-जान-ओ-दिल-ओ-जिगर भी लुटा चुके हैं

बुतों को देना न भूल कर दिल न उन पे होना ज़रा भी माइल

नहीं है जुज़ रंज उन से हासिल तुझे ये 'नादिर' जता चुके हैं

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In Hindi By Famous Poet Nadir Shahjahanpuri. is written by Nadir Shahjahanpuri. Complete Poem in Hindi by Nadir Shahjahanpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.