नादिर शाहजहाँ पुरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नादिर शाहजहाँ पुरी
नाम | नादिर शाहजहाँ पुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nadir Shahjahanpuri |
जन्म की तारीख | 1890 |
मौत की तिथि | 1963 |
तुझे देखा तिरे जल्वों को देखा
रहमत-ए-हक़ को न कर मायूस अपने फ़ेअ'ल से
फूल खुलते ही तितली भी आई
पत्थरों पे नाम लिखता हूँ तिरा
नंग है राज़-ए-मोहब्बत का नुमायाँ होना
मतलब का ज़माना है 'नादिर' कोई क्या देगा
किसी से फिर मैं क्या उम्मीद रक्खूँ
जो भी दे दे वो करम से वही ले ले 'नादिर'
जल बुझूँगा भड़क के दम भर में
इंसान के दिल को ही कोई साज़ नहीं है
भरे रहते हैं अश्क आँखों में हर दम
बा'द मरने के भी अरमान यही है ऐ दोस्त
ज़िंदगी अपनी कामयाब नहीं
वो कभी माइल-ए-वफ़ा न हुआ
मिरे मिटने पे गर तू भी मिटा होता तो क्या होता
माँगना काम मुझ सवाली का
लुट गया दिल कहाँ नहीं मालूम
लगता नहीं कहीं भी मिरा दिल तिरे बग़ैर
क्यूँ ये कहते हो क्या नहीं मालूम
कोई उस ज़ालिम को समझाता नहीं
किए क़रार मगर बे-क़रार ही रक्खा
कौन कहता है ग़म मुसीबत है
जो दर्द-ए-जिगर में कमी हो तो जानूँ
हम उन के ग़म में तड़प रहे हैं जो ग़ैर से दिल लगा चुके हैं
हम दिल फ़िदा करें कि तसद्दुक़-ए-जिगर करें
दिल मिट गया तो ख़ैर ज़रूरत नहीं रही