तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
ज़बानों से दहानों से तकल्लुम से बयानों से
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हैं दीन के पाबंद न दुनिया के मुक़य्यद
फूलों को अपने पाँव से ठुकराए जाते हैं
ऐ बुत हैं हुस्न में तिरी मशहूर पिंडलियाँ
दरिया-ए-शराब उस ने बहाया है हमेशा
फिर न बाक़ी रहे ग़ुबार कभी
दिल मुझे कुफ़्र आश्ना न करे
कोई परी हो अगर हम-कनार होली में
सर कटा कर सिफ़त-ए-शम्अ' जो मर जाते हैं
हो गए राम जो तुम ग़ैर से ए जान-ए-जहाँ
नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो
न ख़ंजर उठेगा न तलवार इन से