न ख़ंजर उठेगा न तलवार इन से
ये बाज़ू मिरे आज़माए हुए हैं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
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नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो
तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
दरिया-ए-शराब उस ने बहाया है हमेशा
कोई परी हो अगर हम-कनार होली में
फूलों को अपने पाँव से ठुकराए जाते हैं
सर कटा कर सिफ़त-ए-शम्अ' जो मर जाते हैं
हैं दीन के पाबंद न दुनिया के मुक़य्यद
फिर न बाक़ी रहे ग़ुबार कभी
ऐ बुत हैं हुस्न में तिरी मशहूर पिंडलियाँ
रूह तन्हा गई जन्नत को सुबुक-सारी से
तशरीफ़ शब-ए-वा'दा जो वो लाए हुए हैं