हो गए राम जो तुम ग़ैर से ए जान-ए-जहाँ
जल रही है दिल-ए-पुर-नूर की लंका देखो
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कोई परी हो अगर हम-कनार होली में
नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो
दरिया-ए-शराब उस ने बहाया है हमेशा
सर कटा कर सिफ़त-ए-शम्अ' जो मर जाते हैं
तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
न ख़ंजर उठेगा न तलवार इन से
दिल मुझे कुफ़्र आश्ना न करे
हैं दीन के पाबंद न दुनिया के मुक़य्यद
फिर न बाक़ी रहे ग़ुबार कभी
ऐ बुत हैं हुस्न में तिरी मशहूर पिंडलियाँ
तशरीफ़ शब-ए-वा'दा जो वो लाए हुए हैं
दिल आँखों से आशिक़ बचाए हुए हैं