हैं दीन के पाबंद न दुनिया के मुक़य्यद
क्या इश्क़ ने इस भूल-भुलय्याँ से निकाला
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सर कटा कर सिफ़त-ए-शम्अ' जो मर जाते हैं
फूलों को अपने पाँव से ठुकराए जाते हैं
नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो
ऐ बुत हैं हुस्न में तिरी मशहूर पिंडलियाँ
रूह तन्हा गई जन्नत को सुबुक-सारी से
तशरीफ़ शब-ए-वा'दा जो वो लाए हुए हैं
कोई परी हो अगर हम-कनार होली में
दिल आँखों से आशिक़ बचाए हुए हैं
तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
हो गए राम जो तुम ग़ैर से ए जान-ए-जहाँ
दरिया-ए-शराब उस ने बहाया है हमेशा