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एक हम ही नहीं तक़दीर के मारे साहब - नदीम सिरसीवी कविता - Darsaal

एक हम ही नहीं तक़दीर के मारे साहब

एक हम ही नहीं तक़दीर के मारे साहब

लोग हैं बख़्त-ज़दा सारे के सारे साहब

मेरा नेज़े पे सजा सर है पयाम-ए-ग़ैरत

कोई नेज़े से मिरा सर न उतारे साहब

मैं भी बचपन में ख़लाओं का सफ़र करता था

खेला करते थे मिरे साथ सितारे साहब

दफ़अ'तन हम ने सिला पाया मुनाजातों का

दफ़अ'तन सामने आए वो हमारे साहब

जानवर में हया इंसाँ से ज़ियादा देखी

उल्टे बहने लगे तहज़ीब के धारे साहब

मुझ में दुनिया रही और मैं भी रहा दुनिया में

मुझ को घेरे रहे हर वक़्त ख़सारे साहब

ताकि दरियाओं की वहशत रहे हावी सब पर

डूब जाता हूँ मैं दरिया के किनारे साहब

इस्तक़ामत का गला घोंट के दम लेते हैं

कितने वहशी हुआ करते हैं सहारे साहब

शुक्रिया आप ने बर्दाश्त तो कर ली ये ग़ज़ल

आप भी जाइए अब हम भी सिधारे साहब

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In Hindi By Famous Poet Nadeem Sirsivi. is written by Nadeem Sirsivi. Complete Poem in Hindi by Nadeem Sirsivi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.