तिरी यादों की नक़्क़ाशी खुरच कर फेंक आए हैं
तिरी यादों की नक़्क़ाशी खुरच कर फेंक आए हैं
झुलसती रेत पर हम इक समुंदर फेंक आए हैं
अक़ीक़-ओ-नीलम-ओ-लअ'ल-ओ-जवाहर फेंक आए हैं
समुंदर में अजब मंज़र शनावर फेंक आए हैं
तिरी यादें तिरी बातें सभी औराक़-ए-पारीना
हम इक इक कर के सब दिल-सोज़ मंज़र फेंक आए हैं
तलातुम हो कि तूफ़ाँ हो ये दरिया पार करना है
हम अपनी कश्तियाँ मौजों के अंदर फेंक आए हैं
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