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अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है - नदीम गुल्लानी कविता - Darsaal

अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है

अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है

छोड़ना है तो बहाने की ज़रूरत क्या है

लग चुकी आग तो लाज़िम है धुआँ उट्ठेगा

दर्द को दिल में छुपाने की ज़रूरत क्या है

उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें

फिर मिरे ख़्वाब में आने की ज़रूरत क्या है

अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों से

उन से फिर हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है

आज बैठे हैं तिरे पास कई दोस्त नए

अब तुझे दोस्त पुराने की ज़रूरत क्या है

साथ रहते हो मगर साथ नहीं रहते हो

ऐसे रिश्ते को निभाने की ज़रूरत क्या है

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In Hindi By Famous Poet Nadeem Gullani. is written by Nadeem Gullani. Complete Poem in Hindi by Nadeem Gullani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.