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आसमाँ इश्क़ की अज़्मत के सिवा भी कुछ है - नदीम फ़ाज़ली कविता - Darsaal

आसमाँ इश्क़ की अज़्मत के सिवा भी कुछ है

आसमाँ इश्क़ की अज़्मत के सिवा भी कुछ है

क्या ये सहरा मिरी वहशत के सवा भी कुछ है

मूँद लूँ आँख तो बे-कार है सब रंग-ए-जहाँ

क्या मिरी चश्म-ए-इनायत के सिवा भी कुछ है

कुछ तो है जिस के बताने से हूँ क़ासिर लेकिन

अब तिरे दर्द में लज़्ज़त के सिवा भी कुछ है

मेरी आँखों से कोई उस का सरापा देखे

तब खुलेगा कि क़यामत के सिवा भी कुछ है

हर तअल्लुक़ किसी क़ीमत का तलब-गार नहीं

दिल के सौदे में तिजारत के सिवा भी कुछ है

हाँ वह इक लम्हा कि हक़-गोई पे गर्दन कट जाए

यानी ता-उम्र इबादत के सिवा भी कुछ है

हुस्न सब हुस्न-ए-तबीअ'त पे है मौक़ूफ़ 'नदीम'

या कहीं हुस्न-ए-तबीअ'त के सिवा भी कुछ है

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In Hindi By Famous Poet Nadeem Fazli. is written by Nadeem Fazli. Complete Poem in Hindi by Nadeem Fazli. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.