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कुछ इस तरह से ज़माने पे छाना चाहता है - नदीम फर्रुख कविता - Darsaal

कुछ इस तरह से ज़माने पे छाना चाहता है

कुछ इस तरह से ज़माने पे छाना चाहता है

वो आफ़्ताब पे पहरे बिठाना चाहता है

तअ'ल्लुक़ात के धागे तो कब के टूट चुके

मगर ये दिल है कि फिर आना जाना चाहता है

जो क़तरा क़तरा इकट्ठा हुआ था आँखों में

वो ख़ून अब मिरी पलकों पे आना चाहता है

चटख़ रहा है जो रह रह के मेरे सीने में

वो मुझ में कौन है जो टूट जाना चाहता है

अमीर-ए-शहर तिरी बंदिशें मआज़-अल्लाह

फ़क़ीर अब तिरी बस्ती से जाना चाहता है

ये ख़्वाहिशात का पंछी अजीब है हर रोज़

नई फ़ज़ाएँ नया आब-ओ-दाना चाहता है

उदासी झाँकने लगती है उस की आँखों से

वो शख़्स जब भी कभी मुस्कुराना चाहता है

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In Hindi By Famous Poet Nadeem Farrukh. is written by Nadeem Farrukh. Complete Poem in Hindi by Nadeem Farrukh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.