जैसा हूँ जिस हाल में हूँ अच्छा हूँ मैं
जैसा हूँ जिस हाल में हूँ अच्छा हूँ मैं
तुम ने ज़िंदा समझा तो ज़िंदा हूँ मैं
इक आवाज़ के आते ही मर जाऊँगा
इक आवाज़ के सुनने को ज़िंदा हूँ मैं
खुले हुए दरवाज़े दस्तक भूल चुके
इन्दर आ जाओ पहचान चुका हूँ मैं
और कोई पहचान मिरी बनती ही नहीं
जानते हैं सब लोग कि बस तेरा हूँ मैं
जाने किस को राज़ी करना है मुझ को
जाने किस की ख़ातिर नाच रहा हूँ मैं
अब तो ये भी याद नहीं कि मोहब्बत में
कब से तेरे पास हूँ और कितना हूँ मैं
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