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जहाँ पे होता हूँ अक्सर वहाँ नहीं होता - नदीम अहमद कविता - Darsaal

जहाँ पे होता हूँ अक्सर वहाँ नहीं होता

जहाँ पे होता हूँ अक्सर वहाँ नहीं होता

वहीं तलाश करो मैं जहाँ नहीं होता

अगर तुम्हारी ज़बाँ से बयाँ नहीं होता

मिरा वजूद कभी दास्ताँ नहीं होता

बिछड़ गया था वो मिलने से पेश-तर वर्ना

मैं इस तरह से कभी राएगाँ नहीं होता

नज़र बचा के निकलना तो चाहता हूँ मगर

वो किस जगह से है ग़ाएब कहाँ नहीं होता

कभी तो यूँ कि मकाँ के मकीं नहीं होते

कभी कभी तो मकीं का मकाँ नहीं होता

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In Hindi By Famous Poet Nadeem Ahmad. is written by Nadeem Ahmad. Complete Poem in Hindi by Nadeem Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.