वो एक शख़्स ब-अंदाज़-ए-महरमाना मिला
वो एक शख़्स ब-अंदाज़-ए-महरमाना मिला
मिला वो जब भी हमें ज़ात से जुदा न मिला
हमें भी अपनी जबीं को झुकाना आता था
मगर तलाश थी जिस की वो नक़्श-ए-पा न मिला
किसी के हुस्न का मज़मून हम रक़म करते
सो हस्ब-ए-हाल हमें ऐसा क़ाफ़िया न मिला
वज़ाहतें तो मोहब्बत में हम भी करते मगर
किताब-ए-दिल का हमें कोई हाशिया न मिला
उसे जफ़ा का जफ़ा से जवाब क्या देते
हमें मिज़ाज मिला भी तो दोस्ताना मिला
न था सरिश्त में आह-ओ-फ़ुग़ाँ का रंग कोई
इसी लिए तो हमें नाला-ए-रसा न मिला
अगर मिले तो उसे हाल-ए-दिल ही कह देना
फिर उस के बा'द वो तुम से मिला मिला न मिला
मिसाल-ए-मौज-ए-रवाँ सब गुज़रते जाते हैं
इसी लिए तो हमें कोई नाख़ुदा न मिला
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