तेरी तलाश तेरी तमन्ना तो मैं भी हूँ
तेरी तलाश तेरी तमन्ना तो मैं भी हूँ
जैसा तिरा ख़याल है वैसा तो मैं भी हूँ
ता'मीर जैसी चाहिए वैसी न हो सकी
बुनियाद अपनी रोज़ उठाता तो मैं भी हूँ
बोसीदा छाल पेड़ से लिपटी है गर तो क्या
अच्छे दिनों की आस पे ज़िंदा तो मैं भी हूँ
ऐ ज़िंदगी मुझे तो ख़बर तक न हो सकी
हर-चंद अपने ग़म का मुदावा तो मैं भी हूँ
महरूमी-ए-हयात का मुझ को भी ग़म तो है
महरूमी-ए-हयात पे रोता तो मैं भी हूँ
शायद निकल ही आए यहाँ कोई रास्ता
इस शहर-ए-बे-लिहाज़ में ठहरा तो मैं भी हूँ
ऐ ज़िंदगी तो किस लिए मायूस मुझ से है
तेरी तवक़्क़ुआत पे पूरा तो मैं भी हूँ
नोक-ए-क़लम पे सूरत-ए-इज़हार ये भी है
तुझ को ग़ज़ल के रूप में लिखता तो मैं भी हूँ
ऐ ज़िंदगी तू थामती मेरे वजूद को
तेरे लिए जहान में भटका तो मैं भी हूँ
ऐ काश जान ले तू मिरे दिल की दास्ताँ
तुम हो तो ज़िंदगी का तक़ाज़ा तो मैं भी हूँ
मुझ में जो इज़्तिराब है मेरे सबब से है
मुझ से न कुछ कहो कि समझता तो मैं भी हूँ
ये क्या कि ख़्वाहिशों का सफ़र ख़त्म ही न हो
ये क्या कि एक मोड़ पे ठहरा तो मैं भी हूँ
ये क्या कि एक तौर से गुज़रेगी ज़िंदगी
ये क्या कि एक राह पे चलता तो मैं भी हूँ
रखता नहीं हूँ दिल में हवाओं का कुछ भी ख़ौफ़
राहों में तेरी दीप जलाता तो मैं भी हूँ
तुम आए और समेट के दुनिया निकल गए
इस उम्र के सराब में भटका तो मैं भी हूँ
मैं भी दुखों से मावरा कब हूँ जहान में
बार-ए-ग़म-ए-हयात उठाता तो मैं भी हूँ
मैं भी भटक रहा हूँ ज़माने के साथ साथ
अंधा अगर जहान है अंधा तो मैं भी हूँ
तेरे बयान में है न मेरे बयान में
इस ज़िंदगी को देख दिखाता तो मैं भी हूँ
कुछ रौशनी की आस है मुझ को भी ऐ 'नबील'
आँखों के दीप रोज़ जलाता तो मैं भी हूँ
हँसती है मुझ पे दुनिया तो हँसती रहे 'नबील'
इस के मुआ'मलात पे हँसता तो मैं भी हूँ
रुक से गए 'नबील' ये किस के ख़याल में
तू देख ग़ौर से मुझे रुकता तो मैं भी हूँ
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