किसी को ख़ार किसी साँस को बबूल किया
किसी को ख़ार किसी साँस को बबूल किया
जो हम ने कार-ए-मोहब्बत किया फ़ुज़ूल किया
हमेशा ख़ाक उड़ाई है रास्तों ने मिरी
इस इंतिज़ार की शिद्दत ने मुझ को धूल किया
सजा के रख दिया काँटा भी मेरे पहलू में
किसी बहार ने मुझ को कभी जो फूल किया
रह-ए-हयात में आसाइशों को ठुकरा कर
तुम्हारे दर्द को मैं ने सदा क़ुबूल किया
हमेशा फूलों को बदला है ख़ार-ओ-ख़स में 'नबील'
किसी भी ख़ार को लेकिन कभी न फूल किया
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