हम को ये डर है कि इम्कान किसी और का है
हम को ये डर है कि इम्कान किसी और का है
या'नी वो शख़्स निगहबान किसी और का है
ये जो हर लहज़ा धड़कते हैं मिरे सीने में
दिल किसी और का अरमान किसी और का है
ग़ाएबाना यही समझा वो फ़क़त मेरा है
जब मिला तो लगा नादान किसी और का है
दस्तकें सुन के ही अंदाज़ा हुआ था हम को
वो हमारा नहीं मेहमान किसी और का है
हाकिम-ए-शाम की बैअ'त से खुला है मुझ पर
तख़्त पर मा'नी-ए-क़ुरआन किसी और का है
हम मुसाफ़िर हैं तो जाना है कहीं और हमें
घर किसी और का सामान किसी और का है
हम यूँही क़र्ज़ चुकाते रहे अनजाने में
काश हम जानते तावान किसी और का है
बाँध कर सर पे कफ़न कूद पड़े हैं जिस में
जंग है ग़ैर की मैदान किसी और का है
रुख़ वो रखता है ब-ज़ाहिर मिरी जानिब लेकिन
वो तो मेरा नहीं सुल्तान किसी और का है
मैं हूँ ना-ख़ुश कि ख़िज़ाँ आन पड़ी है बे-वक़्त
बाग़बाँ ख़ुश है कि नुक़सान किसी और का है
उम्र-भर हम ने पिलाया है जिन्हें अपना लहू
वो बहारें वो गुलिस्तान किसी और का है
ये मकाँ किस की विरासत है हमें क्या मालूम
सहन अपना है तो दालान किसी और का है
सेहन-ए-गुलशन से निकल जाने का मेरा शाहा
मैं समझता रहा एलान किसी और का है
कारवाँ लुटने का उस को तो नहीं दर्द 'नबील'
वो समझता है कि नुक़सान किसी और का है
यूँ भी महरूम हैं हम रंग से ख़ुश्बू से 'नबील'
फूल अपने हैं तो गुल-दान किसी और का है
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