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अक़्ल गहवारा-ए-औहाम हुई जाती है - नाज़ मुरादाबादी कविता - Darsaal

अक़्ल गहवारा-ए-औहाम हुई जाती है

अक़्ल गहवारा-ए-औहाम हुई जाती है

हर तमन्ना मिरी नाकाम हुई जाती है

बाइ'स-ए-शोरिश-ए-कौनैन है इंसाँ की ख़ुदी

बे-ख़ुदी मोरिद-ए-इल्ज़ाम हुई जाती है

अपने परवानों को ऐ शम-ए-मुसलसल न जला

ज़िंदगी वाक़िफ़-ए-अंजाम हुई जाती है

हर रविश पर चमन-ए-दहर में यूँ गुल न खिला

हर नज़र दिल के लिए दाम हुई जाती है

यूँ भी कोई रुख़-ए-रौशन से उठाता है नक़ाब

हर नज़र मोरिद-ए-इल्ज़ाम हुई जाती है

किन फ़ज़ाओं में ज़िया-रेज़ है ऐ मेहर-ए-जमाल

ख़ाना-ए-दिल में मिरे शाम हुई जाती है

हो के मजबूर मुसलसल ग़म-ओ-अंदोह से 'नाज़'

ज़िंदगी ग़र्क़-ए-मय-ओ-जाम हुई जाती है

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In Hindi By Famous Poet Naaz Muradabadi. is written by Naaz Muradabadi. Complete Poem in Hindi by Naaz Muradabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.