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उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते - मुज़्तर ख़ैराबादी कविता - Darsaal

उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते

उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते

हज़ार कुछ हो मगर इक वफ़ा नहीं करते

बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं

भले हो तुम जो किसी का भला नहीं करते

वो आएँगे मिरी तक़रीब-ए-मर्ग में तौबा

कभी जो रस्म-ए-अयादत अदा नहीं करते

जहाँ गए यही देखा कि लोग मरते हैं

यही सुना कि वो वा'दा वफ़ा नहीं करते

किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद

गुनाह करने को क्या पारसा नहीं करते

जो इन हसीनों पे मरते हैं जीते-जी 'मुज़्तर'

वो इंतिज़ार-ए-पयाम-ए-क़ज़ा नहीं करते

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In Hindi By Famous Poet Muztar Khairabadi. is written by Muztar Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Muztar Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.